बहुत देर से एक ऐसा ब्लॉग शुरू करने की फ़िराक में था,जिसमे अध्यात्म पथ का हर पहलू शामिल हो सके,
लेकिन विषय वस्तु की रूप रेखा खींचते हुए लगा कि इतना विस्तृत तो कोई और विषय है ही नहीं.
सो इस के लिए कोई अंतिम लाइन नहीं खींची मैंने.
इस ब्लॉग पर हर विषय जो ईश्वर,धर्म या अध्यात्म से जुडा होगा,शामिल करूंगा.
इस के इलावा कुछ अनुतरित प्रश्न भी हैं,जिन का उतर गोल मोल ही मिलता आया है,उनका उतर भी ढूँढने की कोशिश की जाएगी.
१.क्या ईश्वर है?
२.ईश्वर ने क्यों इस दुनिया का निर्माण किया?
३.क्या ईश्वर अथवा मोक्ष की प्राप्ति अनिवार्य है?
और असंख्य इन जैसे प्रश्न.
.
और कुछ ज्वलंत मुद्दे भी हैं.
१.क्या धर्म जरूरी है?
२.क्या धर्म राजनीति से प्रेरित है?
३.क्या धर्म पुस्तकों को बदलने की जरूरत है?
४.अध्यात्म चिंतन सबसे निकृष्ट है.
५.क्या धर्म सज़ा भी देता है?
६.ईश्वर की जरूरत क्या है?
७.क्या ध्यान करने की वस्तु है?
८.क्या गुरू के बिना गति नहीं है?
९.क्या धार्मिक पुस्तकें ईश्वरीय प्रेरणा से लिखी गयी हैं?
१०.क्या धर्म औरतों के हकों की अनदेखी करता आया है?
११.क्या जातिवाद और वर्ण विभाग हिन्दू धर्म में ही मिलता है?और क्या यह सही है?
१२.अगर भगवान् एक ही है तो संसार के धर्म अलग अलग व्याख्या क्यों करते हैं?या तो भगवान् एक नहीं है या भगवान् है ही नहीं.
और भी बहुत से सवाल हैं.
आप सुधी पाठकों से निवेदन है कि अपने मन का कोई भी प्रश्न पूछिए.यथा शक्ति उतर देने की चेष्टा करूंगा.
आपके विचारों ,टिप्पणियों का स्वागत है.
कुछ शुभ चिंतकों का धन्यवाद करना चाहता हूँ जो ब्लॉग शुरू होने से पहले ही इस से जुड़ गए.इनकी तीव्र उत्कंठा को नमन.
अपने बारे में.......कुछ ख़ास नहीं. नाम छुपाने की कोशिश करता हूँ क्योंकि बड़े नाम की चाह नहीं.काफी सालों से अध्यात्म पथ पर चलने की कोशिश कर रहा हूँ.जो पाया है आपसे बांटने की इच्छा है.
इस लिए नहीं कि आप मेरा अनुसरण करें.बल्कि इस लिए कि इस पथ के अनुगामियों के कुछ काम आ सकूं.
बहुत जल्द ही आपके साथ पहली पोस्ट बाटूंगा.भाषा सरल है मेरी.गूढ़ भाषा मुझे आती नहीं,भाती भी नहीं.श्लोक मुझे याद नहीं रहते.
अर्थ जरूर आत्मसात करने की कोशिश करता हूँ.
ईश्वर बहुत ही सरल है,सहज है.
ईश्वर प्राप्ति भी बहुत सरल है, सहज है.
उसको हाज़िर नाज़िर जान कर मैं यह कहना चाहता हूँ कि आप भी सहजता से उसे पा लेंगे.
बस मेरे साथ साथ चलिए.
शेष अगली पोस्ट में.......
आपसे बहुत कुछ जानने को मिलेगा क्योंकि आप सच्चे जिज्ञासु है.वास्तव में तो हम सभी अध्यात्म पथ पर चल रहे हैं जाने या अनजाने .आप जैसे सुंदर ज्ञानवान पथिक मिलेंगे तो यात्रा सुखद रहेगी.
जवाब देंहटाएंनाम की चाह 'नाम के छिपाने' से न रहती हो ऐसा मै नहीं मानता.नाम न बताने में आप जो सोचते हैं वह भी ठीक हो सकता है.सहजता और सरलता तो होनी ही चाहिए .
आदरणीय राकेश जी,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रथम टिप्पणी के लिए शुक्रिया.
आपके जैसा जिज्ञासु मिल गया तो मेरा लेखन सार्थक हो गया.
आपने बहुत ही सही लिखा है,नाम की चाह नाम छिपाने से भी रह जाती है.
उस प्रभु ने आप के मुख सच ही कहलवाया है.
उस से ही मेरी प्रार्थना है कि मेरी यह चाह कभी पूरी न करे.
आपके जैसे संत आत्मा व्यक्ति से वार्तालाप करके मन आनंदित हो जाता है.
आभार.
जहाँ तक चाह का प्रश्न हैं तो सर्वश्रेष्ठ एकमात्र चाह तो ईश्वर प्राप्ति की ही बताई गयी है क्योंकि वही एक ऐसी चाह है जिससे सभी चाहें निवर्त हो जाती हैं और पूर्णानंद की स्थिति प्राप्त हो जाती है.बाकी सब चाहे तो मानस को इधर उधर की भटकन ही प्राप्त कराती है.फिर चाहे 'मै मेरा नाम होने की' चाह करूं और चाहे 'मै मेरा नाम न होने की चाह करूं.'
जवाब देंहटाएंएक पुराना गाना याद आता है 'जो मिल गया उसीको मुक्कदर समझ
लिया ,हर फ़िक्र को धुएं में उडाता चला गया ,मै जिन्दगी का जश्न मनाता चला गया .'
जीवन दर्शन से परिपूर्ण लेख के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंकृपया Word verification से टिप्पणीकारों को छुटकारा दिलाएं।
जीतनी तारीफ करू ....वह कम ही है ! बहुत - बहुत धन्यवाद..
जवाब देंहटाएंrakesh ji ki tarah apna bhi sochne hai .idhar dhyan hi nahi gaya aana sukhad raha .
जवाब देंहटाएंआपके इस सुन्दर ब्लॉग को मै कल चर्चामंच पर रख रही हूँ ..आभार .. चर्चामंच पर भी आएगा और अमृतरस ब्लॉग पर भी.. और अपनी विचारों से अनुग्रहित कीजियेगा .,..
जवाब देंहटाएंसुन्दर आलेख के लिए बधाई..
जवाब देंहटाएंन जाने क्यों मै श्री राकेश जी को अपना गुरु तुल्य मानने लगा हूँ उनके विचारों में महात्मा आनंद स्वामी की झलक मिलती है.
जवाब देंहटाएंउन्ही के शब्दों में __आपसे बहुत कुछ जानने को मिलेगा क्योंकि आप सच्चे जिज्ञासु है.वास्तव में तो हम सभी अध्यात्म पथ पर चल रहे हैं जाने या अनजाने .आप जैसे सुंदर ज्ञानवान पथिक मिलेंगे तो यात्रा सुखद रहेगी.
बहुत सुन्दर लेख लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
जवाब देंहटाएंसुन्दर आलेख के लिए बधाई|
जवाब देंहटाएंलगता है नाराज है हमसे --मुझे तो याद नही --फिर भी माफ़ी !
जवाब देंहटाएंसुन्दर और सार्थक लेख के लिए बधाई !
इतना कठिन विषय चुनना ही अपने आप में बहुत बड़ा कर्म है और आप अपना धर्म निभाते रहे --इस कठिन -पथ पर हम आपके साथ है ---
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जवाब देंहटाएंਬਹੁਤ ਹੀ ਵਧੀਆ ਲੇਖ...
जवाब देंहटाएंਬਹੁਤ ਹੀ ਵਧੀਆ ਜਾਣਕਾਰੀ ਲਈ ਤਹਿ ਦਿਲੋਂ ਧੰਨਵਾਦ !
ਮੇਰੀ ਛੁਪੇ ਰਹਿਣ ਦੀ ਚਾਹ
ਤੇ ਛੁਪ ਤੁਰ ਜਾਣ ਦੀ
ਹਾਏ ਪੂਰੀ ਹੁੰਦੀ ਨਾ !
ਹਰਦੀਪ
vo muskura raha hai... uska rehem yun hi aap par bana rahe.
जवाब देंहटाएंविशाल जी,
जवाब देंहटाएंविशाल फलक का चुनाव किया है। आपकी पोस्ट में उल्लेखित प्रश्नों पर ज्ञान-चर्चा अभुतपूर्व रहेगी। स्वागत करते है।
यह चर्चा बिना किसी पंथ का नाम लिये मात्र उसकी विचारधारा का उल्लेख करते सम्पन्न हो। अर्थार्त मात्र आध्यात्मिकता।
शुभकामनाएँ
Vishal jee , kahne ko to jeene ke liye roti ,kapra aur makan hi jaruri hai jo is sthul shareer ki jarurton ko pura karta hai..lekin is shareer me jo rahta hai uske liye aadhyatm ki jarurat hoti hai. jo sote- jagte hame khinchta rahta hai..anytha ham keval gehun me hi ulajh kar rah jate ...koi hai jise gulab pasand hai..aapki pahal mujhe bhi kheench rahi hai ..aage bhi sath bana rahe...aabhar
जवाब देंहटाएंVery interesting. Wish to know the answer of this query :
जवाब देंहटाएंWhat is Ego, what is its relation with anger and inferiority complex and how we can overcome this ?
Since you have invited questions, with all fairness i submit this.