सोमवार, 18 अप्रैल 2011

संतोषी जीवन ( कुछ पढ़ा,कुछ सुना )

पहला सुख निरोगी काया ,
दूजा सुख घर में हो माया,
तीजा सुख सुलक्षणा नारी,
चौथा सुख पुत्र आज्ञाकारी,
पांचवां सुख स्वदेस में वासा
छठा सुख राज में पासा
सांतवा सुख संतोषी जीवन,
यह मिल जाए तो धन्य है जीवन.

हमारे शास्त्रों  में संतोष को सबसे बड़ा सुख बताया गया है.लेकिन मनुष्य का स्वभाव बड़ा अद्भुत है.जो उसके हाथ में रहता है,उसकी कद्र नहीं होती,जो हाथ से चला जाता है ,उसके लिए बहुत आकर्षण रहता है.जो है उससे संतोष नहीं होता ,जो नहीं है उसको मन तरसता रहता है.अपना सुख कोई नहीं गिनता, दुसरे का सब गिनते हैं.दूसरे का दुःख कोई नहीं देखता ,अपना सब देखते हैं,और इसी चक्र में जीवन शान्ति नष्ट हो जाती है और एक शाश्वत अतृप्ति ,एक चिर असंतोष मन में घर कर लेता है.और वही सारी दुखों का कारण बन जाता है.जो मन की शान्ति और संतोष पा लेता है,वही असल में जीता है,वही जीवन संग्राम विजेता है.मन की शान्ति न हो तो सारे सुख वैभव  के बाद भी मनुष्य एक शापित व्यक्ति की तरह संतप्त है सुखहीन है.जीवन के  समस्त धर्म,आत्मज्ञान और नीतिशास्त्र इसी एक मात्र हेतु के लिए ,मन की शान्ति की कुंजी खोज निकालने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं,वह जिसे मिल गयी ,वही आत्म ज्ञानी है,वही साधक है.


चाह, गयी चिंता मिटी मनुवा बे परवाह,

जिसको कछु न चाहिए सो जग शहंशाह.

न सुख काजी पंडितां  न सुख भूप भयां,

सुख सहजा ही आवसी तृष्णा रोग गयां.

और अब सुनिए नज़ीर अकबराबादी की बात...


पूरे हैं वो मर्द जो हर हाल में खुश हैं

जो फक्र में हैं पूरे वो हर हाल में खुश हैं,                                            

हर काम में हर वाम में हर चाल में खुश हैं,                                            
गर माल दिया यार ने तो माल में खुश हैं,
बे ज़र जो किया तो उसी अहवाल में खुश हैं,                                           
इफ़्लास में इद्बार में इकबाल  में खुश हैं,                                              
पूरे हैं वो मर्द जो हर हाल में खुश हैं.

                                                     
चेहरे पे मलामत न जिगर में असरे गम                                                

माथे पे कहीं चीं है न अबरू पे कहीं ख़म,                                               
शिकवा न जुबां पर न चश्म हुई नम                                                     

गम में वही ऐश,अलम में भी वही दम                                                 
हर बात में हर औकात में हर अफआल  में खुश हैं,                                 
पूरे हैं वो मर्द जो हर हाल में खुश हैं. 


गर यार की मर्जी हुई सर जोड़ के बैठे,
घर बार छुडाया तो घर छोड़ के बैठे,
मोड़ा उन्हें जिधर वहीं मुंह मोड़ के बैठे,
गुदड़ी जो सिलाई तो वही ओढ़  के बैठे,
और शाल ओढाई तो उसी शाल में खुश  हैं,
पूरे हैं वो मर्द जो हर हाल में खुश हैं. 

गर उसने दिया गम तो गम में रहे खुश

जिस तौर रखा उसने उस आलम में रहे खुश,
खाने को मिला कम तो उसी  कम में रहे खुश,
जिस तरह रखा उसने उसी दम में रहे खुश,
दुःख दर्द में आफ़ात में जंजाल में खुश हैं 
पूरे हैं वो मर्द जो हर हाल में खुश हैं.

गर उसने ओढ़ाया तो लिया ओढ़ दोशाला,

कम्बल जो दिया तो वही काँधे पे संभाला,
चादर जो ओढाई तो वही हो गयी बाला,                                                 
बन्द्वाई जो लंगोटी तो वही हंस के कहा ला,
पौशाक में,दस्तार में,रुमाल में खुश हैं,
पूरे हैं वो मर्द जो हर हाल में खुश हैं. 

गर खाट विछाने को मिली खाट में सोये,

दुकां में सुलाया तो वो जा हाट में सोये,
रस्ते में कहा सो तो वो जा बाट में सोये,
गर टाट बिछाने को दिया टाट में सोये,
और खाल बिछा दी तो खाल में खुश हैं,
पूरे हैं वो मर्द जो हर हाल में खुश हैं .
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फक्र=फकीरी
वाम=रंग
बे ज़र=गरीब                                         
चीं=शिकन
इफ़्लास=दरिद्रता,
इद्बार=कंगाली,
इकबाल=समृद्धि
अहवाल=हालत
मलामत=शिकायत

शुक्रवार, 25 मार्च 2011

आज के युग में कृष्ण कौन?

आज के युग में कृष्ण आपका सद विवेक ही है.जो आपके मन रूपि अर्जुन को सद्बुद्धि दे सकता है.विवेक को जागृत रखिये सत्संग और सत्साहित्य से.लेकिन सत्साहित्य और सत्संग के समय  भी विवेक की आँखों से ही पढ़िए,विवेक की आँखों से सुनिए.

आज के गुरुढम के युग में भी सबसे बड़ा गुरु भी विवेक ही है.चाहे किसी भी गुरु का अनुसरण करिए लेकिन अपने विवेक का साथ मत छोडिये.जो गुरु विवेक को छोड़  सिर्फ अपना अनुसरण करवाता हो ,आपको सिर्फ अपने  मत का साहित्य पढने की सलाह देता हो आपके  विवेक को हरने की  कोशिश  करता  है 
इसी तरह किसी भी धर्म  को समझना हो तो भी विवेक रूपि  कृष्ण का साथ मत छोडिये.धर्म की स्थानीय  उत्पति को,सामयिक ज्ञान को और रूढीवादिता को समझने  के लिए  आपका विवेक ही आपको जागृत करता है. 

शनिवार, 26 फ़रवरी 2011

अध्यात्म- पथ क्या है?


बहुत देर से एक ऐसा ब्लॉग शुरू करने की फ़िराक में था,जिसमे अध्यात्म पथ का हर पहलू शामिल हो सके,
लेकिन विषय वस्तु की रूप रेखा खींचते हुए लगा कि इतना विस्तृत तो कोई  और विषय है ही नहीं.
सो इस के लिए कोई अंतिम लाइन नहीं खींची मैंने.
इस ब्लॉग पर हर विषय जो ईश्वर,धर्म  या अध्यात्म से जुडा होगा,शामिल करूंगा.
इस के इलावा कुछ अनुतरित प्रश्न   भी हैं,जिन का उतर गोल मोल ही मिलता आया है,उनका उतर भी ढूँढने की कोशिश की जाएगी.
१.क्या ईश्वर है?
२.ईश्वर ने क्यों इस दुनिया का निर्माण किया?
३.क्या ईश्वर अथवा मोक्ष की प्राप्ति अनिवार्य है?
और असंख्य इन  जैसे प्रश्न.
.
और कुछ ज्वलंत मुद्दे भी हैं.
१.क्या धर्म जरूरी है?
२.क्या धर्म राजनीति से प्रेरित है?
३.क्या धर्म पुस्तकों को बदलने की जरूरत है?
४.अध्यात्म चिंतन सबसे निकृष्ट है.
५.क्या धर्म सज़ा भी देता है?
६.ईश्वर की जरूरत क्या है?
७.क्या ध्यान करने की वस्तु है?
८.क्या गुरू के बिना गति नहीं है?
९.क्या धार्मिक पुस्तकें ईश्वरीय   प्रेरणा से लिखी गयी हैं?
१०.क्या धर्म औरतों के हकों की अनदेखी करता आया है?
११.क्या जातिवाद और वर्ण  विभाग हिन्दू धर्म में ही मिलता है?और क्या यह सही है?
१२.अगर भगवान् एक ही है तो संसार के धर्म अलग अलग व्याख्या क्यों करते हैं?या तो भगवान् एक नहीं है या भगवान्  है ही नहीं.
और भी बहुत से सवाल हैं.
आप सुधी पाठकों से निवेदन है कि अपने मन का कोई भी प्रश्न पूछिए.यथा शक्ति उतर देने की चेष्टा करूंगा.
आपके विचारों ,टिप्पणियों का स्वागत है.
कुछ शुभ चिंतकों का धन्यवाद  करना चाहता हूँ जो ब्लॉग शुरू होने से पहले ही इस से जुड़ गए.इनकी तीव्र उत्कंठा को नमन.

अपने बारे में.......कुछ ख़ास नहीं. नाम छुपाने की कोशिश करता हूँ क्योंकि बड़े नाम की चाह नहीं.काफी सालों से अध्यात्म पथ पर चलने की कोशिश कर रहा हूँ.जो पाया है आपसे बांटने की इच्छा है.
इस लिए नहीं कि आप मेरा अनुसरण करें.बल्कि इस लिए कि इस पथ के अनुगामियों के  कुछ काम आ सकूं.  
बहुत जल्द ही आपके साथ पहली पोस्ट बाटूंगा.भाषा सरल है मेरी.गूढ़ भाषा मुझे आती नहीं,भाती भी नहीं.श्लोक मुझे  याद नहीं रहते.
अर्थ जरूर आत्मसात करने की कोशिश करता हूँ.
ईश्वर बहुत ही सरल है,सहज है.
ईश्वर प्राप्ति भी बहुत सरल है, सहज है.
उसको हाज़िर नाज़िर जान कर मैं यह कहना चाहता हूँ कि आप भी सहजता से उसे पा लेंगे.
बस मेरे साथ साथ चलिए.
शेष अगली पोस्ट में.......

सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

मुआफीनामा


अभी ब्लॉग 
निर्माणाधीन 
 
 है

मुझे खेद है कि आप को असुविधा हुई.
कृपया दूसरा ब्लॉग देखें---दिल की कलम से .