पहला सुख निरोगी काया ,
दूजा सुख घर में हो माया,
तीजा सुख सुलक्षणा नारी,
चौथा सुख पुत्र आज्ञाकारी,
सांतवा सुख संतोषी जीवन,
यह मिल जाए तो धन्य है जीवन.
हमारे शास्त्रों में संतोष को सबसे बड़ा सुख बताया गया है.लेकिन मनुष्य का स्वभाव बड़ा अद्भुत है.जो उसके हाथ में रहता है,उसकी कद्र नहीं होती,जो हाथ से चला जाता है ,उसके लिए बहुत आकर्षण रहता है.जो है उससे संतोष नहीं होता ,जो नहीं है उसको मन तरसता रहता है.अपना सुख कोई नहीं गिनता, दुसरे का सब गिनते हैं.दूसरे का दुःख कोई नहीं देखता ,अपना सब देखते हैं,और इसी चक्र में जीवन शान्ति नष्ट हो जाती है और एक शाश्वत अतृप्ति ,एक चिर असंतोष मन में घर कर लेता है.और वही सारी दुखों का कारण बन जाता है.जो मन की शान्ति और संतोष पा लेता है,वही असल में जीता है,वही जीवन संग्राम विजेता है.मन की शान्ति न हो तो सारे सुख वैभव के बाद भी मनुष्य एक शापित व्यक्ति की तरह संतप्त है सुखहीन है.जीवन के समस्त धर्म,आत्मज्ञान और नीतिशास्त्र इसी एक मात्र हेतु के लिए ,मन की शान्ति की कुंजी खोज निकालने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं,वह जिसे मिल गयी ,वही आत्म ज्ञानी है,वही साधक है.
चाह, गयी चिंता मिटी मनुवा बे परवाह,
जिसको कछु न चाहिए सो जग शहंशाह.
न सुख काजी पंडितां न सुख भूप भयां,
सुख सहजा ही आवसी तृष्णा रोग गयां.
और अब सुनिए नज़ीर अकबराबादी की बात...
पूरे हैं वो मर्द जो हर हाल में खुश हैं
जो फक्र में हैं पूरे वो हर हाल में खुश हैं,
हर काम में हर वाम में हर चाल में खुश हैं,
गर माल दिया यार ने तो माल में खुश हैं,
बे ज़र जो किया तो उसी अहवाल में खुश हैं,
इफ़्लास में इद्बार में इकबाल में खुश हैं,
पूरे हैं वो मर्द जो हर हाल में खुश हैं.
चेहरे पे मलामत न जिगर में असरे गम
माथे पे कहीं चीं है न अबरू पे कहीं ख़म,
शिकवा न जुबां पर न चश्म हुई नम
गम में वही ऐश,अलम में भी वही दम
हर बात में हर औकात में हर अफआल में खुश हैं,
पूरे हैं वो मर्द जो हर हाल में खुश हैं.
गर यार की मर्जी हुई सर जोड़ के बैठे,
घर बार छुडाया तो घर छोड़ के बैठे,
मोड़ा उन्हें जिधर वहीं मुंह मोड़ के बैठे,
गुदड़ी जो सिलाई तो वही ओढ़ के बैठे,
और शाल ओढाई तो उसी शाल में खुश हैं,
पूरे हैं वो मर्द जो हर हाल में खुश हैं.
गर उसने दिया गम तो गम में रहे खुश
जिस तौर रखा उसने उस आलम में रहे खुश,
खाने को मिला कम तो उसी कम में रहे खुश,
जिस तरह रखा उसने उसी दम में रहे खुश,
दुःख दर्द में आफ़ात में जंजाल में खुश हैं
पूरे हैं वो मर्द जो हर हाल में खुश हैं.
गर उसने ओढ़ाया तो लिया ओढ़ दोशाला,
कम्बल जो दिया तो वही काँधे पे संभाला,
चादर जो ओढाई तो वही हो गयी बाला,
बन्द्वाई जो लंगोटी तो वही हंस के कहा ला,
पौशाक में,दस्तार में,रुमाल में खुश हैं,
पूरे हैं वो मर्द जो हर हाल में खुश हैं.
गर खाट विछाने को मिली खाट में सोये,
दुकां में सुलाया तो वो जा हाट में सोये,
रस्ते में कहा सो तो वो जा बाट में सोये,
गर टाट बिछाने को दिया टाट में सोये,
और खाल बिछा दी तो खाल में खुश हैं,
पूरे हैं वो मर्द जो हर हाल में खुश हैं .
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फक्र=फकीरी
वाम=रंग
बे ज़र=गरीब
चीं=शिकन
इफ़्लास=दरिद्रता,
इद्बार=कंगाली,
इकबाल=समृद्धि
अहवाल=हालत
मलामत=शिकायत
दूजा सुख घर में हो माया,
तीजा सुख सुलक्षणा नारी,
चौथा सुख पुत्र आज्ञाकारी,
पांचवां सुख स्वदेस में वासा
छठा सुख राज में पासासांतवा सुख संतोषी जीवन,
यह मिल जाए तो धन्य है जीवन.
हमारे शास्त्रों में संतोष को सबसे बड़ा सुख बताया गया है.लेकिन मनुष्य का स्वभाव बड़ा अद्भुत है.जो उसके हाथ में रहता है,उसकी कद्र नहीं होती,जो हाथ से चला जाता है ,उसके लिए बहुत आकर्षण रहता है.जो है उससे संतोष नहीं होता ,जो नहीं है उसको मन तरसता रहता है.अपना सुख कोई नहीं गिनता, दुसरे का सब गिनते हैं.दूसरे का दुःख कोई नहीं देखता ,अपना सब देखते हैं,और इसी चक्र में जीवन शान्ति नष्ट हो जाती है और एक शाश्वत अतृप्ति ,एक चिर असंतोष मन में घर कर लेता है.और वही सारी दुखों का कारण बन जाता है.जो मन की शान्ति और संतोष पा लेता है,वही असल में जीता है,वही जीवन संग्राम विजेता है.मन की शान्ति न हो तो सारे सुख वैभव के बाद भी मनुष्य एक शापित व्यक्ति की तरह संतप्त है सुखहीन है.जीवन के समस्त धर्म,आत्मज्ञान और नीतिशास्त्र इसी एक मात्र हेतु के लिए ,मन की शान्ति की कुंजी खोज निकालने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं,वह जिसे मिल गयी ,वही आत्म ज्ञानी है,वही साधक है.
चाह, गयी चिंता मिटी मनुवा बे परवाह,
जिसको कछु न चाहिए सो जग शहंशाह.
न सुख काजी पंडितां न सुख भूप भयां,
सुख सहजा ही आवसी तृष्णा रोग गयां.
और अब सुनिए नज़ीर अकबराबादी की बात...
पूरे हैं वो मर्द जो हर हाल में खुश हैं
जो फक्र में हैं पूरे वो हर हाल में खुश हैं,
हर काम में हर वाम में हर चाल में खुश हैं,
गर माल दिया यार ने तो माल में खुश हैं,
बे ज़र जो किया तो उसी अहवाल में खुश हैं,
इफ़्लास में इद्बार में इकबाल में खुश हैं,
पूरे हैं वो मर्द जो हर हाल में खुश हैं.
चेहरे पे मलामत न जिगर में असरे गम
माथे पे कहीं चीं है न अबरू पे कहीं ख़म,
शिकवा न जुबां पर न चश्म हुई नम
गम में वही ऐश,अलम में भी वही दम
हर बात में हर औकात में हर अफआल में खुश हैं,
पूरे हैं वो मर्द जो हर हाल में खुश हैं.
गर यार की मर्जी हुई सर जोड़ के बैठे,
घर बार छुडाया तो घर छोड़ के बैठे,
मोड़ा उन्हें जिधर वहीं मुंह मोड़ के बैठे,
गुदड़ी जो सिलाई तो वही ओढ़ के बैठे,
और शाल ओढाई तो उसी शाल में खुश हैं,
पूरे हैं वो मर्द जो हर हाल में खुश हैं.
गर उसने दिया गम तो गम में रहे खुश
जिस तौर रखा उसने उस आलम में रहे खुश,
खाने को मिला कम तो उसी कम में रहे खुश,
जिस तरह रखा उसने उसी दम में रहे खुश,
दुःख दर्द में आफ़ात में जंजाल में खुश हैं
पूरे हैं वो मर्द जो हर हाल में खुश हैं.
गर उसने ओढ़ाया तो लिया ओढ़ दोशाला,
कम्बल जो दिया तो वही काँधे पे संभाला,
चादर जो ओढाई तो वही हो गयी बाला,
बन्द्वाई जो लंगोटी तो वही हंस के कहा ला,
पौशाक में,दस्तार में,रुमाल में खुश हैं,
पूरे हैं वो मर्द जो हर हाल में खुश हैं.
गर खाट विछाने को मिली खाट में सोये,
दुकां में सुलाया तो वो जा हाट में सोये,
रस्ते में कहा सो तो वो जा बाट में सोये,
गर टाट बिछाने को दिया टाट में सोये,
और खाल बिछा दी तो खाल में खुश हैं,
पूरे हैं वो मर्द जो हर हाल में खुश हैं .
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फक्र=फकीरी
वाम=रंग
बे ज़र=गरीब
चीं=शिकन
इफ़्लास=दरिद्रता,
इद्बार=कंगाली,
इकबाल=समृद्धि
अहवाल=हालत
मलामत=शिकायत